नई दिल्ली: स्वास्थ्य मंत्रालय भले ही कोरोना के लगातार घटते मामलों पर अपनी पीठ थपथपा रहा हो लेकिन मौत के बढ़ते मामले वाकई चिंता का विषय बने हुए हैं. आखिर, कोरोना के मामले घटने के बावजूद मौत के आंकड़े घटने की जगह बढ़ क्यों रहे हैं? जब मामले 8 मई को 4 लाख 1 हजार के करीब आए तो मरने वालों की तादाद 4100 से ज्यादा थी और अब जब पिछले 24 घंटों में मामले घटकर 2 लाख 67 हजार के करीब रिपोर्ट हुए तब मरने वालों की संख्या 4100 की संख्या से अधिक 4529 तक जा पहुंची. ये दुनियाभर में एक दिन में कोरोना से मरने वालों की सबसे ज्यादा तादाद है. बीते 5 दिनों के आंकड़े के ग्राफ को देखें तो समझा जा सकता है कि कोरोना किस तरह लोगों की जान ले रहा है…
-15 मई को 3,26,098 मामले, 3890 मौत
- 16 मई को 3,11,170 मामले, 4077 मौत
- 17 मई को 2,81,386 मामले, 4106 मौत
- 18 मई को 2,63,533 मामले, 4329 मौत
- 19 मई को 2,67,334 मामले, 4529 मौत
कोरोना से ठीक होने के 3 महीने बाद लगवाएं वैक्सीन : केंद्र
8 मई के बाद से देश में कोरोना के नए मामलों में गिरावट आनी शुरू हुई लेकिन इसके बावजूद मौत का बढ़ता डराने वाला है. जानकार बताते हैं कि जो आज से 11 दिन पहले संक्रमित हुए उनमें 1% ऐसे होते हैं जो क्रिटिकल हों और उनके मौत की आशंका ही ज्यादा होती है और संक्रमण या क्रिटिकल होने के करीब 15-20 दिनों तक उनकी स्थिति सुधरने और बिगड़ने में वक्त लगता है. लिहाज़ा मौत के आंकड़े अभी बढ़ते दिख रहे हैं. Epidemiologist डॉक्टर जुगल किशोर बताते हैं, ‘जो पॉजिटिव हुए थे उसमें से करीब 1% के करीब क्रिटिकल होने हैं. क्रिटिकल केस में हफ्ते 10 दिन से 15 दिन तक लगेगा, वो हॉस्पिटल में एडमिट हुए और उनकी किसी वजह से डेथ हुई तो उसमे कम से कम 10-12 दिन का फर्क होगा या कभी कभी वो 20 दिन तक भी हॉस्पिटल में रहते हैं और उनकी डेथ होती है.
आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि जिन राज्यों में एक्टिव केस लोड जितना ज़्यादा रहा है, वहीं मौत के मामले भी सबसे ज्यादा रिपोर्ट हो रहे हैं. बीते 24 घंटों में महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली, यूपी में मौत के सबसे ज़्यादा मामले आए. ये वो राज्य हैं जहां एक्टिव केस लोड ज़्यादा हैं. एक्टिव मामले बिना लक्षण वाले या मॉडरेट हैं तब तक तो ठीक है पर जैसे ही यह सीरियस होते हैं मौत की आशंका बढ़ जाती है.